भारत, रूस और जापान -तीन देश, एक समस्या, अलग-अलग हल
india prime desk देवेन्द्र सिंह संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष, यानी यू एन एफ पी ए की विश्व जनसंख्या स्थिति 2025 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की जनसंख्या एक दशमलव चार छह तीन नौ अरब यानी एक दशमलव चार छह बिलियन तक पहुंच चुकी है। यानी अब यह दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि भारत की कुल प्रजनन दर, यानी टी एफ आर, अब एक दशमलव नौ रह गई है, जो कि दो दशमलव एक के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।
कब और कहाँ हुआ बदलाव?
यह गिरावट पिछले दो दशकों में तेजी से आई है। उन्नीस सौ सत्तर के दशक में एक भारतीय महिला औसतन पाँच बच्चे जन्म देती थी, जबकि दो हजार पच्चीस तक यह संख्या दो से भी कम रह गई। राज्यों में असमानता भी बहुत बड़ी है। बिहार में तीन दशमलव शून्य, मेघालय में दो दशमलव नौ, और उत्तर प्रदेश में दो दशमलव सात जैसे राज्यों में जनसंख्या अब भी तेजी से बढ़ रही है, जबकि केरल, दिल्ली, और तमिलनाडु जैसे राज्यों में लोग बच्चे पैदा करने से बच रहे हैं।
क्यों घट रही है जन्मदर?
इस सवाल का जवाब कई परतों में छिपा है।
पहला, आर्थिक असुरक्षा और बढ़ती शिक्षा व स्वास्थ्य लागतें।
दूसरा, महिलाओं की करियर प्राथमिकता और स्वतंत्रता।
तीसरा, शहरी भीड़भाड़, मकान की कमी, और महंगाई।
चौथा, मानसिक तनाव, प्रदूषण और बांझपन में वृद्धि।
यू एन एफ पी ए ने इसे “वास्तविक प्रजनन संकट” कहा है। यानी लोग बच्चे नहीं इसलिए पैदा नहीं कर रहे कि वे नहीं चाहते, बल्कि इसलिए कि वे ऐसा कर नहीं पा रहे हैं।
कैसे बदल रहा है भारत?
भारत की आबादी दो हजार साठ के दशक तक एक दशमलव सात अरब के उच्चतम स्तर पर पहुंचेगी, इसके बाद घटने लगेगी। लगभग अड़सठ प्रतिशत आबादी कार्यशील आयु वर्ग, यानी पंद्रह से चौंसठ वर्ष की है। यह “जनसांख्यिकीय लाभांश” भारत के पास एक सुनहरा मौका भी है और चुनौती भी। तय यह करेगा कि क्या भारत इस ऊर्जा को रोजगार, नवाचार और कौशल विकास में बदल पाता है या नहीं।
कौन हैं इस बदलाव के केंद्र में?
युवा और शिक्षित भारतीय, खासकर महिलाएं। वे अब अपने जीवन के फैसले खुद करना चाहती हैं — कब शादी करनी है, कब बच्चे पैदा करने हैं, या बिल्कुल नहीं करने हैं। यही “प्रजनन स्वायत्तता” यू एन एफ पी ए रिपोर्ट का सबसे अहम संदेश है — कि असली विकास तब होगा जब हर व्यक्ति अपनी जनसंख्या, शिक्षा, और भविष्य पर खुद निर्णय ले सके।
दुनिया के अन्य देशों का हाल
दुनिया के कई देश अब “बेबी बस्ट” यानी शिशु कमी के दौर से गुजर रहे हैं। यानी बच्चे पैदा न करने की प्रवृत्ति इतनी तेज़ हो गई है कि अब सरकारें जनसंख्या बढ़ाने के लिए नीतियाँ बनाने पर मजबूर हैं। आइए जानते हैं क्या, कौन, कब, क्यों और कैसे इस पर कदम उठा रहे हैं।
जापान: “चुप्पी का आपातकाल” और पारिवारिक बजट दोगुना करना
जापान की प्रजनन दर अब एक दशमलव दो पर गिर चुकी है, जो प्रतिस्थापन स्तर दो दशमलव एक से बहुत नीचे है।
प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने इसे देश का “मौन आपातकाल” कहा है।
सरकार अब एक तीन वर्षीय तेज़ी योजना चला रही है जिसमें बाल भत्ता बढ़ाया गया है, उच्च शिक्षा को निःशुल्क करने और माता-पिता की छुट्टी को सौ प्रतिशत वेतन सहित देने की घोषणा की गई है।
दोहरे करियर वाली पारिवारिक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कार्यस्थल सुधार किए जा रहे हैं ताकि महिलाओं को बच्चों की देखभाल के लिए छुट्टी लेना आसान हो सके।
जापान अपने पारिवारिक बजट को दोगुना कर “बच्चों और परिवारों के लिए एजेंसी” के ज़रिए पूरे देश में एक समेकित समर्थन प्रणाली बना रहा है।
रूस: “बच्चों के बदले पैसा” योजना और विवादित जनसंख्या वृद्धि अभियान
रूस इस समय अपनी जनसंख्या संकट की सबसे गंभीर स्थिति से गुजर रहा है। दो हजार पच्चीस की पहली तिमाही में जन्मदर पिछले दो सौ वर्षों में सबसे कम दर्ज हुई है और देश की आबादी एक सौ छियालीस मिलियन से गिरकर लगातार घट रही है।
यूक्रेन युद्ध, युवाओं का पलायन, आर्थिक अस्थिरता और वृद्ध जनसंख्या की बढ़ती संख्या ने इस गिरावट को और तेज किया है।
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसे “रूस के अस्तित्व का प्रश्न” बताते हुए जनसंख्या बढ़ाने के लिए कठोर और विवादित कदम उठाए हैं — जैसे बड़े परिवारों के लिए कर में छूट, “वीर माता” पदक, और कुछ क्षेत्रों में स्कूल व कॉलेज की लड़कियों को बच्चा पैदा करने पर नकद भुगतान देने की योजना।
रूस की जन्मदर दो हजार तेईस में एक दशमलव इकतालीस पर पहुँच गई, जिससे आबादी तेजी से घट रही है।
सरकार ने दस क्षेत्रों में योजना शुरू की है, जिसके तहत स्कूल या कॉलेज जाने वाली लड़कियों को भी बच्चे पैदा करने पर एक लाख रूबल यानी लगभग नब्बे हज़ार रुपये तक दिए जा रहे हैं।
पहली बार माँ बनने पर छह लाख सत्तर हज़ार रूबल यानी सात लाख रुपये और दूसरी बार पर आठ लाख चौरानवे हज़ार रूबल यानी साढ़े नौ लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है।
पुतिन ने मातृत्व सम्मान बढ़ाने के लिए “वीर माता पुरस्कार” भी फिर से शुरू किया है, लेकिन आलोचक इसे नैतिक और सामाजिक शोषण मान रहे हैं, खासकर स्कूली लड़कियों के लिए।
चीन और यूरोप: कर छूट और सब्सिडी मॉडल
चीन ने एक राष्ट्रीय जनसंख्या प्रोत्साहन योजना शुरू की है जिसमें हर बच्चे पर पाँच सौ डॉलर वार्षिक सब्सिडी दी जाएगी, साथ ही दिन में बच्चों की देखभाल और माता-पिता की छुट्टी में सुधार किए जा रहे हैं।
पोलैंड, हंगरी, और आइसलैंड जैसे यूरोपीय देशों ने तीन प्रतिशत से अधिक सकल घरेलू उत्पाद परिवार कल्याण योजनाओं पर खर्च किया है — जिनमें कर छूट, बच्चों के समर्थन भुगतान और मुफ्त बालवाड़ी शामिल हैं।
अमेरिका में भी “पाँच हज़ार डॉलर बाल बोनस योजना” प्रस्तावित की गई है ताकि युवा परिवार अधिक बच्चे पैदा करें।
विश्व स्तर पर रुझान और सबक
दो हज़ार पचास तक दुनिया के पिचहत्तर प्रतिशत देशों की जन्मदर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे होगी — यह “वैश्विक जनसंख्या ठहराव” का युग ला सकती है।
गिरती जन्मदर से श्रम संकट, आर्थिक वृद्धि की मंदी, और सामरिक शक्ति में गिरावट जैसी चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं।
पर स्थायी समाधान वित्तीय प्रोत्साहन नहीं, बल्कि विश्वसनीय काम-जीवन संतुलन, किफायती आवास, महिलाओं की सुरक्षा और शिक्षा में निवेश है — ताकि बच्चे पैदा करना “ज़िम्मेदारी का बोझ” नहीं बल्कि “संवेदनशील विकल्प” बने।
नतीजा
जापान और रूस जैसे अमीर देश अब पैसों से मातृत्व को आकर्षक बनाने की दौड़ में हैं। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं — “बच्चे केवल अर्थशास्त्र से नहीं, भरोसे और सुरक्षित भविष्य से पैदा होते हैं।”
