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जनगणना 2025, जानिए सवाल क्या होगें ?

इंडिया प्राइम| देवेन्द्र सिंह  | जयपुर | जनगणना 2025, जानिए सवाल क्या होगें ?| मोदी सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि इस बार की जनगणना में जातिगत आंकड़े भी एकत्र किए जाएंगे। यह 1931 के बाद पहली बार होगा जब सभी जातियों का विस्तृत डेटा इकट्ठा किया जाएगा। देश मेंं 2021 में जनगणना होनी थी, लेकिन सरकार की घोषणा के बाद अब 2025 में शुरू होने है और 2026 की शुरु के महीनों तक पूरी होने की उम्मीद है। हालाकिं इसका अंतिम चरण 2031 तक पूरा होगा। यह जनगणना कई मायनों में ऐतिहासिक और तकनीकी रूप से बेहत्तर होगी।

अनुमान लगाया जा रहा है कि इस प्रक्रिया ₹12,000 करोड़ खर्च होने का अनुमान लगाया जा रहा है और इस पर 2021 में हुई पिछली जनगणना के मुकाबले 40% अधिक खर्च होगा। भारत में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी, लेकिन कोविड-19 महामारी और अन्य प्रशासनिक कारणों से 2021 की जनगणना टाल दी गई थी। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल (कैबिनेट) की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि 2025 की जनगणना में सामाजिक और आर्थिक डेटा के साथ-साथ जातिगत आंकड़ों को भी व्यवस्थित रूप से एकत्र किया जाएगा। इस निर्णय को ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि यह पहली बार है जब केंद्र स्तर पर जातिगत जानकारी को स्वीकार कर नीति निर्धारण के लिए उपयोग करने की दिशा में कदम उठाया गया है।

जनगणना 2025 कब शुरू होगी

अब तक हुई जनगणना की प्रक्रिया अपनाई है उनमें दो चरण होते हैं । प्रथम चरण (हाउस लिस्टिंग) इसचरण में घरों की सूची बनाना जो शुरु हो चुका है इसके बाद द्वितीय चरण (जनसंख्या गणना) और व्यक्तिगत डेटा एकत्र करना जिसकी शरुवात अभी होनी है। नागरिकों को एक “स्व-गणना पोर्टल” उपलब्ध कराया जाएगा, जहां वे अपने मोबाइल नंबर और आधार कार्ड के ज़रिए लॉगइन करके जानकारी भर सकेंगे।

अभी तक मिली जानकारी के अनुसार भारत में रहने वाले नागरिकों का  पंजीकरण प्रक्रिया ऑनलाइन पोर्टल (censusindia.gov.in) पर रजिस्ट्रेशन से शुरु होगी और घर-घर सर्वेक्षण फरवरी-मार्च 2025  इन दस्तावेजो जैसे आधार कार्ड, मतदाता आईडी, या जन्म प्रमाण पत्र की जानकारी भी इकट्ठा की जाएगी।इस जनगणना में देशभर में लगभग 30 लाख कर्मी तैनात किए जाएंगे। इनमें स्कूल शिक्षक, ग्राम सेवक, नगर निकाय कर्मचारी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, और अन्य सरकारी अधिकारी शामिल होंगे। उपलब्ध कराए जाने वाले साधन,मोबाइल टैबलेट/स्मार्टफोन,GIS आधारित मैपिंग टूल,प्रशिक्षण मैनुअल और वीडियो,डेटा एंट्री ऐप उपलब्ध करवाया जाएगा।

जनगणना के 5 प्रमुख उद्देश्य

  1. जनसांख्यिकीय डेटा: लिंगानुपात, साक्षरता दर, और जनसंख्या वृद्धि का विश्लेषण।

  2. सामाजिक योजनाएं: आवास (PMAY), स्वास्थ्य (आयुष्मान भारत), और शिक्षा नीतियों को मजबूत करना।

  3. आर्थिक नियोजन: रोजगार, गरीबी रेखा, और संसाधन आवंटन के लिए डेटा।

  4. डिजिटल इंडिया: डिजिटल भुगतान और इंटरनेट पहुंच का मूल्यांकन।

  5. जलवायु अनुकूलन: प्राकृतिक आपदाओं और जल संकट से निपटने की रणनीति।

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जनगणना 2025, जानिए सवाल क्या होगें ?

जनगणना 2025 के दौरान नागरिकों से लगभग 31 प्रमुख प्रश्न पूछे जाएंगे । सामान्य रुप से सरकारी प्रक्रिया के दौरान पुछे जाने वाले प्रश्न व्यक्तिगत जानकारी जिनमें नाम, आयु, लिंग, वैवाहिक स्थिति,जन्म स्थान और राष्ट्रीयता पूछा जा सकता है। इसके अलावा सामाजिक-आर्थिक डेटा के रुप में शैक्षणिक योग्यता, व्यवसाय, आय का स्रोत,परिवार में कामगारों की संख्या.आवासीय जानकारी घर का प्रकार (पक्का/कच्चा), बिजली-पानी की सुविधा,शौचालय और इंटरनेट की उपलब्धता,धर्म और भाषा मातृभाषा और अन्य भाषाओं का ज्ञान की जानकारी ली जा सकती है। साथ ही सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि डिजिटल उपकरणों (स्मार्टफोन, लैपटॉप) की पहुंच,स्वास्थ्य बीमा और सरकारी योजनाओं का लाभ,प्रवासी श्रमिकों का डेटा (महामारी के बाद की पहल हो सकती है।

जनगणना 2025 जातिगत जनगणना क्यों ?

जातिगत जनगणना की माँग का इतिहास आज़ादी से पहले के दौर तक जाता है।1931 की जनगणना अंग्रेजों ने करवाई थी। स्वतंत्रता के बाद, 1951 की जनगणना में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति tribe (ST) के आँकड़े एकत्र किए गए, लेकिन इनके भीतर जाति आधारित विभाजन, सामाजिक स्थिति, शिक्षा, और आय जैसे डेटा 1931 के बाद कभी आधिकारिक तौर पर एकत्र नहीं किए गए। जबकि OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) और अन्य जातियों की गिनती बंद कर दी गई।

  • मंडल आयोग (1979- 1980): OBC को आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग ने 1931 के जाति आँकड़ों का केवल आंशिक डेटा पर आधारित जानकारी का उपयोग किया जिसमें OBC की अनुमानित संख्या 52% बताई गई थी । इन आकड़ो को पुराने और अधूरा माना गया और  इससे यह माँग उठी कि नए सिरे से जातिगत जनगणना हो।

  • कई सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों ने यह सवाल उठाया कि जब आधार पर योजनाएं जाति आधारित हैं, तो सरकारी डेटा जाति पर क्यों नहीं है?

  • सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने भी समय-समय पर सरकार से कहा है कि आरक्षण जैसे निर्णय ठोस डेटा पर आधारित होने चाहिए।

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जनगणना 2025, जानिए सवाल क्या होगें ?
जनगणना 2025, जानिए सवाल क्या होगें ?

अब तक की जनगणनाएं: सारणी (टेबल)

वर्ष जनसंख्या (करोड़) विशेषताएं
1951 36.1 आज़ादी के बाद पहली जनगणना
1961 43.9 भाषा और धर्म पर विस्तृत डेटा शामिल
1971 54.8 पहली बार जनसंख्या नियंत्रण योजनाएं लागू
1981 68.3 शहरीकरण का प्रारंभिक विश्लेषण
1991 84.6 मंडल आयोग के बाद सामाजिक वर्ग विश्लेषण
2001 102.9 डिजिटल डेटा एंट्री की शुरुआत
2011 121.0 ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से आंकड़े सार्वजनिक

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बिहार सरकार ने पहले जातिगत सर्वेक्षण क्यों करवाया?

बिहार सरकार ने राज्य की कुल 215 जातियों का डेटा एकत्र किया गया । सर्वे में 5 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को लगाया गया। इसके  राजनीतिक और सामाजिक और आर्थिक कारण बताए जाते है। बिहार जातिगत सर्वेक्षण 2023 के नतीजे इस प्रकार रहे ।OBC + EBC: 63% (OBC 27%, EBC 36%) SC: 19.7%,ST: 1.7%,सवर्ण: 15.5% । इन आँकड़ों का उपयोग: आरक्षण कोटा बढ़ाने और नीतियों को ठोस आधार देने के लिए उपयोग करने की मांग उठने लगी इसके साथ ही  अन्य राज्यों पर बिहार के बाद तेलंगाना, ओडिशा, और महाराष्ट्र ने भी जातिगत सर्वेक्षण की माँग उठी।

  1. OBC राजनीति का गढ़: बिहार की 63% आबादी OBC और EBC (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) है। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने इसे सामाजिक न्याय का एजेंडा बनाया।

  2. राष्ट्रीय स्तर पर दबाव: केंद्र सरकार से जातिगत जनगणना न करने के फैसले के बाद बिहार ने राज्य स्तर पर मिसाल कायम की।

  3. चुनावी लाभ: 2024 लोकसभा चुनाव से पहले OBC वोट बैंक को संतुष्ट करना।

 सामाजिक-आर्थिक कारण:

  • आरक्षण का आधार: बिहार में OBC को 27% और EBC को 18% आरक्षण है, लेकिन यह 1931 के डेटा पर आधारित है। नए सर्वेक्षण से यह साबित करना कि OBC जनसंख्या वर्तमान में अधिक है।

  • योजनाओं का लक्ष्यीकरण: शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य योजनाओं को जाति-आधारित डेटा के अनुसार लागू करना।

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 जनगणना का विश्व इतिहास

जातिगत आंकड़ों को जनगणना का हिस्सा बनाने से जुड़े अनुभव सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि कई अन्य देशों में भी देखे गए हैं, और इनमें कुछ राजनीतिक व सामाजिक चुनौतियाँ भी सामने आई हैं।विश्व के कई देशों में जाति, नस्ल, या जनजातीय आँकड़े एकत्र करने से सामाजिक-राजनीतिक तनाव पैदा हुए हैं। सबसे पहले उपलब्ध आकड़ों के अनुसार विश्व की पहली व्यवस्थित जनगणना ईसा पूर्व 3800-3200 के बीच बाबिलोनिया (मेसोपोटामिया) में की गई थी, जहां मंदिरों द्वारा कर वसूली और सैन्य सेवा के उद्देश्य से नागरिकों और संपत्तियों का लेखा-जोखा रखा जाता था। हालाँकि मौजूदा समय के अनुसार पहली पूर्ण और वैज्ञानिक जनगणना स्वीडन में वर्ष 1749 में आयोजित की गई थी। इसे दुनिया की पहली निरंतर जनगणना प्रणाली माना जाता है, जो बाद में जनसंख्या सांख्यिकी का आधार बनी।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या डिवीजन (UNSD) देशों को हर 10 वर्षों में कम से कम एक बार जनगणना करने की सिफारिश करता है। इसके लिए वैश्विक दिशानिर्देश, प्रश्नावली ढांचे और गोपनीयता मानक तय किए जाते हैं। जनगणना एक वैश्विक अभ्यास है जिसे लगभग सभी देशों में नियमित अंतराल पर किया जाता है। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य है – नीति निर्माण, संसाधनों का सही वितरण, सामाजिक योजना और चुनावी परिसीमन जैसे क्षेत्रों के लिए आवश्यक डेटा जुटाना है।


विश्व के प्रमुख देशों में जनगणना की प्रक्रिया

देश जनगणना अंतराल हालिया जनगणना वर्ष विशेषताएं
भारत 10 वर्ष 2011 (आगामी: 2025) विश्व की सबसे बड़ी जनगणना, पहली बार डिजिटल
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) 10 वर्ष 2020 जातीयता, भाषा, रोजगार और निवास डेटा
चीन 10 वर्ष 2020 सबसे अधिक जनसंख्या, ग्रामीण-शहरी डेटा
ब्राज़ील 10 वर्ष 2022 डिजिटल और मोबाइल डेटा संग्रह
ऑस्ट्रेलिया 5 वर्ष 2021 अनिवार्य भागीदारी, ऑनलाइन फॉर्म
जापान 5 वर्ष 2020 उच्च तकनीकी प्रोसेसिंग और व्यक्तिगत गोपनीयता
रूस 10 वर्ष 2021 कई भाषाओं में प्रश्नावली, जातीय डेटा
कनाडा 5 वर्ष 2021 स्वैच्छिक जातीय पहचान, डिजिटल माध्यम
दक्षिण अफ्रीका 10 वर्ष 2022 जनजातीय वर्गीकरण, आय और शिक्षा पर फोकस
जर्मनी कभी-कभी (आवश्यकता अनुसार) 2011 (अगली 2026) EU नियमों के तहत आंकड़ा संग्रह

अन्य देशों में जातिगत डेटा और उसके प्रभाव 

 मलेशिया

  • बुमिपुत्रा नीति: मलय समुदाय (67%) को शिक्षा और नौकरियों में प्राथमिकता।

  • परिणाम:

    • आर्थिक विकास: मलय समुदाय की भागीदारी बढ़ी।

    • आलोचना: चीनी और भारतीय अल्पसंख्यकों ने भेदभाव का आरोप लगाया।

  • फ्रांस

    • प्रक्रिया: फ्रांस जाति या नस्ल के आधार पर डेटा एकत्र नहीं करता, क्योंकि वहाँ की नीति “Republican Equality” पर आधारित है, यानी सभी नागरिक समान हैं।

    • कारण:

      • सरकार का मानना है कि जातीय आंकड़ों का संग्रह खुद ही भेदभाव को स्थायी बना सकता है।

      • कई बार जब NGOs ने जाति/धर्म आधारित अध्ययन करने की कोशिश की, तो उस पर कानूनी अड़चनें आईं।

          नेपाल: जातिगत आँकड़ों का राजनीतिक दुरुपयोग

  • पृष्ठभूमि: नेपाल में 1854 के मुलुकी ऐन (कानून) से ही जाति-आधारित पदानुक्रम मौजूद है। 2011 की जनगणना में 125 जातियों और 123 भाषाओं को दर्ज किया गया। इससे समस्याएँ के रुप में 

    • मधेशी विरोध: तराई क्षेत्र के मधेशी समुदाय ने दावा किया कि जनगणना में उनकी जनसंख्या कम दर्शाई गई है, जिससे राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रभावित हुआ।

    • आरक्षण विवाद: 2015 के संविधान में जातिगत आँकड़ों के आधार पर आरक्षण कोटा तय किया गया, जिसके खिलाफ उच्च जातियों ने विरोध प्रदर्शन किए।

     श्रीलंका: जाति और जातीयता का टकराव

    • पृष्ठभूमि: श्रीलंका में सिंहली (75%) और तमिल (15%) के बीच तनाव रहा है।

    • जातिगत डेटा का प्रभाव:

      • तमिल विद्रोह (LTTE): सिंहली-बहुल सरकार द्वारा तमिलों के साथ भेदभाव के आरोपों ने 26 साल के गृहयुद्ध को जन्म दिया।

      • राजनीतिक कोटा: जाति/जातीयता के आधार पर चुनावी कोटा व्यवस्था से समुदायों में अविश्वास बढ़ा।

      • जातिगत/नस्लीय आँकड़े दोधारी तलवार हैं। भारत जैसे देशों में यह सामाजिक न्याय का औज़ार हो सकता है, लेकिन रवांडा और नाइजीरिया जैसे उदाहरण दर्शाते हैं कि पारदर्शिता और निष्पक्ष नीतियाँ ही इन्हें प्रभावी बना सकती हैं। दुनिया भर के अनुभव यह दर्शाते हैं कि जाति या नस्ल पर आधारित आंकड़ों का संग्रह जितना महत्वपूर्ण सामाजिक नीतियों के लिए हो सकता है, उतना ही यह सामाजिक तनाव और राजनीतिक विवादों का कारण भी बन सकता है। अमेरिका, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में इस डेटा के आधार पर सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) की नीतियाँ बनीं, लेकिन साथ ही गोपनीयता, वर्गीकरण की अस्पष्टता और राजनीतिक दुरुपयोग के आरोप भी लगे। वहीं फ्रांस जैसे देश इन आंकड़ों को जुटाने से पूरी तरह परहेज़ करते हैं ताकि नागरिकों में कृत्रिम भेद न बढ़े। ऐसे में भारत के लिए भी यह आवश्यक है कि वह जनगणना 2025 में जातिगत आंकड़े जुटाते समय पारदर्शिता, निजता और उद्देश्य की स्पष्टता बनाए रखे, ताकि यह ऐतिहासिक पहल वास्तव में समावेशी विकास की दिशा में एक निर्णायक कदम बन सके।

    • इस लेख पर आपके सुझाव और विचार आमंत्रित है।

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